लिख सकूँ तो_
प्यार लिखना चाहता हूँ ,
ठीक आदमजात-सा
बेखौफ दिखना चाहता हूँ |
थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी
नर्मदा की धार-सी निर्मल रवानी,
पारदर्शी नेह की क्या बात करिए _
किस कदर बेलौस ये दादा भवानी |
प्यार के हाथों
घटी दर पर बाजारों ,
आज बिकना चाहता हूँ |
आपदा-सा आए ये कैसे चरण हैं ?
बनकर पहेली मिले कैसे स्वजन हैं ?
मिलो तो उन ठाकुरों से मिलो खुलकर _
सताही की आयु मे भी 'सुमन' है
कसौटी हैं वह कि जिस पर _
नेह के स्वर
ताल यति गति लय
परखना चाहता हूँ|
'नईम'
लिख सकूँ तो
Reviewed by Triveni Prasad
on
अक्तूबर 28, 2020
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