राह में अपने खड़ा
राह में अपने खड़ा हूँ मैं अकेला
हूँ रहा जग में अभी तक मै धकेला
पूछता कोई नहीं अब खैरियत तक
ले लिया करता नहीं खुद मै झमेला
जिंदगी के ही प्रपंचो से धिरा हूँ
पास आती जा रही अवसान बेला
क्या करे करते अभी तक कौन सोचे
कर रहे सुध बुध बिहारे आज खेला
मिट गया अंतर सभी सद्भाव का जब
कौन अब किसका गुरु, है कौन चेला
ठग रहे आराम से सबके सभी है
पर ठगी के दंश को किसने न झेला
है भुलाने के बहाने ढेर सारे
मग्न में सब जिंदगी का खेद मेला
आप फैसते जा रहे जंजाल में जो
दोष औरों सिर मढ़े, उसने ढकेला
छीनकर भरते रहे अपनी तिजोरी
पर नहीं जाता यहाँ से साथ धेला
Raah me apne khada
Reviewed by Triveni Prasad
on
अप्रैल 12, 2021
Rating:
बहुत अच्छा कविता लिखी गईं
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