Raah me apne khada - खूबसूरत हिंदी कविता

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Raah me apne khada

 राह में अपने खड़ा

राह में अपने खड़ा हूँ मैं अकेला

हूँ रहा जग में अभी तक मै धकेला 


पूछता कोई नहीं अब खैरियत तक 

ले लिया करता नहीं खुद मै झमेला 


राह में अपने खड़ा


जिंदगी के ही प्रपंचो से धिरा हूँ 

पास आती जा रही अवसान बेला 


क्या करे करते अभी तक कौन सोचे 

कर रहे सुध बुध बिहारे आज खेला 


मिट गया अंतर सभी सद्भाव का जब 

कौन अब किसका गुरु, है कौन चेला 


ठग रहे आराम से सबके सभी है 

पर ठगी के दंश को किसने न झेला 


है भुलाने के बहाने ढेर सारे 

मग्न में सब जिंदगी का खेद मेला 


आप फैसते जा रहे जंजाल में जो 

दोष औरों सिर मढ़े, उसने ढकेला 


छीनकर भरते रहे अपनी तिजोरी 

पर नहीं जाता यहाँ से साथ धेला 


Raah me apne khada Raah me apne khada Reviewed by Triveni Prasad on अप्रैल 12, 2021 Rating: 5

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