चलो आज फिर,
पहले वाली दीपावली मनाते है,
विदेशी चमक दमन को छोड़ कर,
आज स्वदेशी दीपकों से सजाते है,
इस धुंए की खुशियाँ छोड़ कर,
हम खिलखिलाहट के पटाके छुड़ाते है,
इस धुंध को मिटाने वाले,
प्रकाश के दीप जलाते हैं,
इस दीपावली को सजाने वाले के
घर का अंधेरा मिटाते हैं,
खुशियों के त्यौहार में,
चलो खुशियाँ बांट कर आते है,
चलो आज फिर हम,
पहले वाली दीपावली मनाते है |
"दीपावली" || Diwali || Hindi Poem
Reviewed by Triveni Prasad
on
नवंबर 10, 2020
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