सोचता हूँ ऐ ज़िंदगी || Hindi poem - खूबसूरत हिंदी कविता

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सोचता हूँ ऐ ज़िंदगी || Hindi poem

सोचता हूँ ऐ ज़िंदगी 

तिलिस्म तू अजीब हो |

दूर कहाँ तक ले चलोगे 

या कि मौत के करीब हो |


फिक्र न कोई करता कभी 

रौ में अपने जा रहा |

ओरों का छीनकर जिंदगी

जिंदगी बिता रहा |

सोचता हूँ ऐ जिंदगी 

जी भर तुझे चले जी लूँ |

पाप-पूण्य से परे निकल 

क्षण का कतरा-कतरा पी लूँ |


न पुण्य-प्रलोभित बुद्धि-विचार 

ना पर-पीकड़ हो कर्म |

सोचता हूँ ऐ जिंदगी 

समरसता तेरा मर्म |


-: अशोक झा दुलार ;-

सोचता हूँ ऐ ज़िंदगी || Hindi poem   सोचता हूँ ऐ ज़िंदगी || Hindi poem Reviewed by Triveni Prasad on नवंबर 15, 2020 Rating: 5

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