" गुफ्तगू दीया और बाटी की " || Hindi Poem - खूबसूरत हिंदी कविता

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" गुफ्तगू दीया और बाटी की " || Hindi Poem

 गुफ्तगू दीया और बाटी की

मिट्टी से दीया और दीया से मिट्टी बनते चले गए,

हम ठहरें लौं, जो हर बार नए सिरे से जले रहे |



उजाला फकत ख्वाहिश ना थी मेरी कभी,

ना जाने कितने चौखट पे हम निशब्द हो खड़े रहे |


अंधेरों से दोस्ती रही मेरे खुद के पैरों की,

ये दुनिया है जिसकी खातिर एक दूजे से लड़ें रहे |


घर चलता नहीं कभी एक जैसे लोगों से,

बाती लहरती रहती और हम जस के तस अड़े रहे |


व्दंद विचारो का है अपनी अपनी कहानी में,

कभी मेरा लहजा नर्म तो कभी उनके बोल कड़े रहे |


संभाला है मैंने दिल में उसे तेल की हर बूंद की तरह "साखी"

खुद का आंगन छोड़ वो और के महल में पड़े रहे |


-: साखी :-

" गुफ्तगू दीया और बाटी की " || Hindi Poem " गुफ्तगू दीया और बाटी की " || Hindi Poem Reviewed by Triveni Prasad on नवंबर 13, 2020 Rating: 5

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